बचपन से हम लड़कियों ने अपने माँ – पापा को ये कहते सुना की ” बेटा शादी के बाद तो तुम हमें छोड़ कर अपने घर चली जाओगी “। सच में क्या ससुराल होता है लड़की का घर ?
नहीं किसी भी लड़की का घर उसका ससुराल नहीं होता है। एक लड़की का असल घर वो होता है जहाँ वो और उसका पति तिनका – तिनका जोड़ कर खुद से अपने आशियाँ को बनाते है।
आज के ब्लॉग में हम ” क्या ससुराल होता है लड़की का घर ” इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे। तो आइये आगे बढ़ते है और विस्तार से इसे समझने की कोशिश करते है।
क्या ससुराल होता है लड़की का घर – हर बेटी पूछे कौन है मेरा अपना घर ?
हर लड़की ये जानना चाहती है की आखिर उनका असली घर कौन है जहाँ जन्म लिया वो घर या ससुराल है उनका घर?
लडकियां जब माँ – बाप के घर होती है तो उनसे अपने घर जाने की बात की जाती है जब वही लड़की ससुराल आती है तो कहते है की पराये घर से आई है।
आखिर हम लड़कियों को ये समझ नहीं आता की आखिर क्यों हमसे ये कहा जाता है।
आदि काल से ये चला आ रहा है की बेटियों का असली घर ससुराल ही होता है।
लेकिन क्या सच में औरत का असली घर उसका ससुराल होता है ?
वैसे मैंने एक ब्लॉग लिखा है “क्या आपकी सास आपको काबू करने की कोशिश करती है “आप चाहे तो पढ़ सकते है।
निचे बनी तालिका में अब मैं आपको भारत और दूसरे कुछ देशों के समुदाय के बारे में बताने जा रही हूँ जहाँ बेटियां ससुराल नहीं अपितु बेटे ससुराल जाते है।
1. मेघालय
भारत का मेघालय राज्य जहाँ आज भी मातृ सत्तात्मक समाज है और लड़कों को शादी के बाद लड़की के घर जाके रहना होता है |
2. इंडोनेशिया
इंडोनेशिया के मिनांगकाबाऊ समुदाय जहाँ लड़कों को शादी के बाद लड़की के घर जाके रहना होता है |
3. चीन
चीन के मोस समुदाय में भी सिर्फ बेटियों की चलती है |
देखा भारत सहित दुनिया के कुछ हिस्सों में आज भी बेटियां अपने माता – पिता के ही घर में रहती है। चलिए इसपर थोड़ा सा विस्तार से जानते है।
मायका पराया और ससुराल अपना घर ऐसा क्यों ?
क्या आपने कभी सोचा है की आखिर क्यों मायका पराया और ससुराल अपना घर कहलाता है ?
ससुराल ही लड़की का घर है ये सोच एक प्रथा की तरह चली आ रही है।
हर लड़की को शादी के बाद लड़के के माँ – बाप के घर में जाकर रहना पड़ता है।
इस वय्वस्था को किसने बनाया – ज़ाहिर है पुरुष प्रधान समाज ने बनाया है ताकि उनकी जड़ मजबूत हो सके।
कितना अजीब है ना की जहां जनम लिया वो पराये हो गए और जो पराये है उन्हें अपना बनाओ।
लड़का और लड़की के बीच का ये भेद समाज ने ही बनाया है और समाज आप और हम ही है।
वैसे मैंने एक ब्लॉग लिखा है “क्या लड़कयों को पति के माता – पिता के साथ रहना चाहिए ” इसे ज़रूर पढ़े।
“क्या ससुराल ही लड़कियों का असली घर है” – मेरी राय
हमसे ये हमेशा से कहा जाता रहा है की ससुराल ही घर है एक औरत का अब मैं बताउंगी की इस पर मेरी खुद की क्या राय है।
मुझे नहीं लगता की एक लड़की का असल घर उसका ससुराल होता है।
मैं भी शादी शुदा हूँ और मुझे ये बिलकुल भी नहीं लगा कभी की ससुराल मेरा घर है।
मेरे लिए तो अपना घर वो है जहाँ आप और आपके पति एक छत के नीचे रहते है बिना किसी भेद – भाव के।
आप अपनी मर्ज़ी के हिसाब से जहाँ जी सके, सच में वही मकान आपका अपना घर है।
ना ससुराल और ना ही मायका इनमे से कोई भी घर लड़की का अपना घर नहीं है।
ये हमेशा याद रखिए की मकान तो ईट और गारों से बनता है पर घर प्यार से बनता है।
आप अपने पति के साथ भले किराये के मकान में ही क्यों ना रहे पर वही आपका अपना घर है।
क्या एक लड़की ससुराल या मायके में बिना किसी रोक टोक के जी सकती है, बिल्कुल नहीं।
मैंने तो मेरा नज़रिया बता दिया अब आप मुझे बताए की आपके हिसाब से क्या ससुराल होता है लड़की का घर।
औरत के लिए कौन सा घर होता है अपना ?
एक औरत जन्म कही लेती है और ब्याह के बाद किसी और घर की हो जाती है।
आखिर एक औरत के लिए कौन सा घर उसका अपना होता है ?
ससुराल और मायका दोनी ही जगह स्त्री को दबा कर रखा जाता है।
अपनी मर्ज़ी से औरतें कहाँ खुल कर सांस भी ले पाती है।
मायके में ये सुनते हुए बड़े होना की तू तो पराई है तुझे तो एक दिन अपने घर जाना है।
शादी के बाद ससुराल में ये सुनना की “अरे ये तो पराई घर से आई है “।
अब सोचों की क्या ज़िंदगी है एक लड़की की ?
अपना घर तो वही होगा एक बेटी के लिए जहाँ वो खुद से निर्णय ले सके, खुद के बलबूते जी सके।
एक स्त्री की ज़िंदगी बहुत ही टेढ़े मेढ़े रास्ते के जैसे होती है।
बेटियां ना तो मायके की हो कर रह सकती है और ना ससुराल की हो पाती है।
अपनी पहचान बनाइये , खुद को आत्म निर्भर बनाये ताकि आप अपने सपनो का घर खुद बना सके।
क्या आपके ससुराल वाले आपको प्रतारित करते है – जानिए अपना हक़
हमारे देश में ना जाने कितनी औरतें है जो घरेलू प्रताड़ना की शिकार होती रहती है।
सोचने की बात तो ये है की घरेलू हिंसा के खिलाफ इतने सख्त कानून है इसके बाद भी हिंसा में कमी नहीं आई है।
“सबसे पहले तो घरेलू हिंसा क्या है ” क्या ये आपको पता है ?
घरेलू दायरे में होने वाले हिंसा को घरेलू हिंसा कहा जाता है।
किसी भी महिला का शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, मौखिक, मनोवैज्ञानिक या यौन शोषण किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाना जिसके साथ महिला के पारिवारिक सम्बन्ध हैं, ये सभी घरेलू हिंसा में शामिल है।
याद रखिये आपको मारने – पीटने या गाली देने का किसी को हक़ नहीं है ना पाती को और ना ही ससुरालवालों को।
कई बार ऐसा होता है की औरतों को ये पता ही नहीं होता की उनपर अत्याचार हो रहा है।
पुरुष प्रधान समाज में हर दिन औरतों के साथ अन्याय होता है पर समाज का ऐसा ढांचा है की महिलाओं को ये सामान्य ही लगता है।
अगर आपके साथ भी अन्याय हो रहा है तो आप इसके खिलाफ आवाज़ उठाये।
भारत में ऐसे बहुत सारे कानून है जो महिलाओं के हक़ की बात करते है।
ज़रुरत है बस आपके अपने हक़ के लिए खुद खड़ा होने की।
मैंने इस विषय पर एक ब्लॉग लिखा है जिसमे महिलाओं के हक़ की बात बताई है आप चाहे तो पढ़ सकते है।
हर ससुराल वालों को बहु को अपनी बेटी समझना चाहिए 🙂
क्या आपने कभी सोचा है की क्या सच में बहुए सास – ससुर की बेटी बन पाती है ?
शादी से पहले लड़के के माँ – बाप ये कहते थकते नहीं की “बहु नहीं बेटी ले जा रहे है, बेटी की तरह रखेंगे ” पर हकीकत में ऐसा होता है क्या ?
देखा जाता है की अक्सर ससुराल में बहु को बेटी जैसा नहीं मानते।
बहु के साथ इस तरह पेश आते है जैसे की वो गैर है।
बहु और बेटी एक ही सिक्के के दो पहलु है।
जो लड़की मायके में किसी की बेटी है वो ससुराल में बहु भी तो है।
आखिर क्यों बहु और बेटी के बीच इतना अंतर किया जाता है।
हर सास ससुर को अपनी बहु को अपनी बेटी की तरह प्यार देना चाहिए।
प्यार ही हर रिश्तें को मजबूत और प्यारा बनाता है।
हर लड़की अपना घर छोड़ किसी और घर का अटूट हिस्सा बन जाती है।
ऐसे में ससुराल वालों को बहु को अपनी बेटी की तरह प्यार और इज्जत देनी ही चाहिए।
क्या बेटियों को पति के माता पिता के साथ रहना चाहिए ?
आज के समाज का एक जवलंत प्रश्न हैं ये।
हमारे समाज की ये सदियों पुरानी प्रथा है।
शादी के बाद हर लड़की को अपने माता – पिता को छोड़ अपने सास – ससुर के साथ रहना पड़ता है।
हमारे समाज का ये मानना हैं की बेटियों को पति के माता पिता के साथ ही रहना चाहियें।
लोगों का ऐसा मानना हैं की सास ससुर के साथ रहने से संसारिक दांव – पेंच की समझ अच्छे से आती हैं।
इससे लड़कियों को घर परिवार को चलाने की अच्छे से समझ आएगी।
ये हमारे समाज की पुराणी प्रथा भी है।
तो ऐसे में लड़कियों को सास ससुर के साथ रहना ही पड़ता है।
हमारे समाज में शादीशुदा लड़कियों को अपने माँ पिता को साथ रखने और साथ रहने का हक नहीं है।
हर बेटी को ये हक हैं की वो अपनी माता पिता के साथ रह सकती हैं उन्हें रख सकती है।
बस जरुरी हैं तो अपने हक के लिए खड़े होने की।
दोस्तों आज मैंने इस ब्लॉग में आप सभी को बताया की क्या ससुराल होता है लड़की का घर या नहीं। साथ ही साथ दूसरी जरुरी बातों से भी अवगत करवाया। अगर आपके मन में कोई सवाल है तो ज़रूर पूछे। मैं चाहती हूँ की अगर आपको इसके बारे में और भी कुछ जानना हैं तो प्लीज कमेंट बॉक्स में जरूर बताये। आपको मेरा ब्लॉग कैसा लगा ये जरूर बताना। अब मिलते हैं नए ब्लॉग पर।

नमस्ते। मेरा नाम दिव्या अरविंद पटेल है। मैं दिव्या दैनिका की संस्थापिका और मुख्य सम्पादिका हूँ। मेरा ब्लॉग मानवीय रिश्तों, विवाहित ज़िन्दगी और लोगो की अंदरूनी पहचान को उभारने के लिए समर्पित है । दिव्या दैनिका के हर लेख के पीछे मेरी खुद की ज़िन्दगी का अनुभव छुपा है।